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बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान

प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |

उत्तर-

बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक

 

(Factors Affecting Childhood Emotional Behaviour)

बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों में से “अधिगम एवं परिपक्वता" (Learning & Maturation) तो प्रमुख कारक है ही, इसके अतिरिक्त भी कई कारक हैं जो बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं। कुछ प्रमुख कारक निम्नानुसार हैं-

(1) बुद्धि (Intelligence) - बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक महत्वपूर्ण कारक है - "बुद्धि"। बुद्धिमान बच्चे संवेगात्मक परिस्थितियों का गहनतापूर्वक विश्लेषण करते हैं और फिर उसके आधार पर विवेकपूर्ण निर्णय लेते हैं। अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि जो बच्चे अधिक बुद्धिमान होते हैं उनमें संवेगात्मक स्थिरता (Emotional Stability) अधिक पायी जाती है। वे संवेगों की अभिव्यक्ति समाज द्वारा मान्य तरीके से करना जल्दी सीख लेते हैं। इसके ठीक विपरीत मंद बुद्धि के बालकों में संवेगात्मक स्थिरता एवं नियंत्रण बहुत ही कम होता है। वे बात-बात पर चिढ़ जाते हैं तथा उग्र रूप से अपने संवेगों का प्रदर्शन करने लगते हैं।

(2) शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health) – “Healthy mind resides in healthy body.” यह कहावत शत-प्रतिशत सत्य है। संवेगात्मक व्यवहार के प्रदर्शन में भी शारीरिक स्वास्थ्य का अहम् योग्दान है। जो बच्चे शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं, वे सदैव खुश एवं प्रसन्नचित दिखाई देते हैं। हँसमुख प्रकृति के कारण उनका सामाजिक समायोजन भी अच्छा होता है। वे अपने संवेगों का प्रदर्शन भी काफी सोच-समझकर करते हैं।

परन्तु रोगी, दुर्बल, बीमार बालक सदैव खिन्न एवं दुःखी रहते हैं। वे क्रोधी एवं चिड़चिड़े हों जाते हैं। अत: उनमें भय, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या दुःख, चिन्ता जैसे नकारात्मक संवेगों को उत्पत्ति अधिक होती है। इस कारण उनका सामाजिक समायोजन अच्छा नहीं हो पाता है। संवेगात्मक अस्थिरता ऐसे बालकों में देखने को अधिक मिलती है।

(3) थकान एवं भूख (Fatigue and Hunger) - थकान, भूख एवं नींद भी बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। "भूखे भजन न होय गोपाला, धरी रहेगी तेरी कंठी माला" वाली उक्ति यहाँ चरितार्थ होती है। बालकों में भूख सहन करने की बिल्कुल भी क्षमता नहीं होती है। भूख लगने पर वे उत्तेजित हो जाते हैं। उनकी संवेगात्मक अस्थिरता बढ़ जाती हैं। इसी प्रकार बालक थकान एवं नींद की स्थिति में अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं कर पाता है। इसका प्रमुख कारण है कि बालक सदैव क्रियाशील रहता है। वह खेलने-कूदने में मग्न रहता है। इस कारण उनकी ऊर्जा व्यय हो जाती है और उन्हें भूख लग जाती है। वे थक भी जाते हैं। अब उन्हें खाने एवं विश्राम की आवश्यकता होती है। यदि थके हुए बालक को घरेलू कार्य या पढ़ने-लिखने को कहा जाए तो वे चिल्ला पड़ते हैं। वे क्रोध में हाथ-पैर पटकने लगते हैं।

(4) पारिवारिक वातावरण (Family Environment) – बालकों के संवेग को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है- "पारिवारिक वातावरण"। बालक की पहली शिक्षिका होती है "माँ" और पहला पाठशाला होता है "घर-परिवार"। यदि घर-परिवार का वातावरण ही कलह-क्लेशपूर्ण, दुखदायी होगा तो निश्चित ही बालकों में नकारात्मक संवेगों का विकास होगा। यादि माता-पिता में आए दिन कलह-क्लेश होते हों, परिवार के सदस्यों में आपसी वैमनस्य हो, ईर्ष्या एवं द्वेष की भावना भरी हो तो ऐसे परिवार में पलने-बढ़ने वाले बालकों में भी क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, भय जैसे नकारात्मक संवेगों का ही अधिक विकास होगा। इसके ठीक विपरीत जिन परिवारों में सुख, शांति, आनंद एवं प्रसन्नता का साम्राज्य होगा, वहाँ पर बालकों में स्वस्थ, सुखद एवं धनात्मक संवेगों का अच्छा विकास होगा। बालकों में खुशी, प्रसन्नता, हर्ष, जिज्ञासा जैसे संवेग अधिक मात्रा में उत्पन्न होंगे।

(5) सामाजिक वातावरण (Social Environment) – बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को सामाजिक वातावरण भी महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं। बालक जिस परिवेश एवं सामाजिक वातावरण में रहता है, उसका प्रभाव तो उस पर पड़ता ही है। यदि बालक के साथी क्रोधी एवं झगड़ालू प्रवृत्ति के होंगे, तो वह भी झगड़ालू एवं क्रोधी प्रवृत्ति का हो जाएगा। यदि बालक वैसे लोगों के सम्पर्क में रहता है जो हँसमुख, मिलनसार एवं स्नेहिल होते हैं, तो उसमें भी इन सकरात्मक गुणों का विकास होता है। क्योंकि बालक अपने परिवार आस-पड़ोस, मित्रों एवं सगे-सम्बन्धियों के चाल-ढाल, बात व्यवहार को देखकर सीखता है और उसी के मुताबिक अपने संवेगों की अभिव्यक्ति करता है।

(6) सामाजिक-आर्थिक स्तर (Socio-Economic status) - बालकों का संवेगात्मक व्यवहार सामाजिक-आर्थिक स्तर पर भी निर्भर करता है। स्प्रिंगर (Springer) ने अपने अध्ययन के आधार पर यह बताया कि निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति में पलने-बढ़ने वाले बालकों में सामाजिक अस्थिरता अधिक होती है। जे०एन०लाल ने भी अपने अध्ययनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि उच्च सामाजिक-आधिक स्तर के परिवार के बालकों में संवेगात्मक स्थिरता अधिक देखने को मिलती है तथा मध्य एवं निम्न स्तरीय परिवार के बालकों में संवेगात्मक अस्थिरता अधिक होती है।

(7) जन्मक्रम (Ordinal Position) - बालकों का जन्मक्रम भी संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। पहले जन्मे बच्चों को माता-पिता, दादा-दादी, बुआ, मौसी आदि परिवार के सदस्यों द्वारा अधिक लाड़-प्यार, स्नेह एवं संरक्षण मिलता है। परन्तु जब घर में दूसरा बच्चा पैदा होता है तो स्वभावतः ही माता-पिता एवं परिवार के सदस्यों का ध्यान उस नवजात शिशु के पालन-पोषण पर आकृष्ट होता है। इस कारण बड़ा बालक छोटे बालक के प्रति ईर्ष्यालु हो जाता है। अब उसे यह लगने लगता है कि इसी बालक ने आकर मेरा लाड़-प्यार एवं एकाधिकार छीन लिया। अतः वह क्रोधी, झगड़ालू एवं ईर्ष्यालु प्रकृति का हो जाता है।

(8) बालक-अभिभावक सम्बन्ध (Parent Child Relationship) -संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है-बालक-अभिभावक सम्बन्ध। माता-पिता की अभिवृत्तियाँ (Attitudes of parent) पालन-पोषण का ढंग, शिक्षा-दीक्षा आदि बालकों के संवेग की मात्रा एवं आकृति को निर्धारित करता है।

बालक-अभिभावक सम्बन्ध के आधार पर माता-पिता के व्यवहारों को मुख्य चार वर्गों में बाँटा गया है-

(i) कठोर माता-पिता (Strict Parent) - यदि माता-पिता का व्यवहार अपने बालकों के प्रति कठोर है। वे बालकों को कठोर नियंत्रण में रखते हैं, तब बालक दब्बू एवं अन्तर्मुखी स्वभाववाला हो जाता है। फलतः उसमें भय संवेग का समावेश हो जाता है। वे अपने माता-पिता से छोटी-छोटी बात भी कहने में डरते हैं।

(ii) पक्षपाती माता-पिता (Favourtitism Parent) - यदि माता-पिता का व्यवहार अपने बालकों के प्रति पक्षपातपूर्ण है और जाने-अनजाने में ही वह किसी एक बालक से अधिक तथा दूसरे से कम प्यार करते हैं तो बालक में क्रोध, ईर्ष्या, परेशानी जैसे संवेगों का विकास हो जाता है। माता-पिता जिस बालक को अधिक प्यार करते हैं, वह बालक उसी बालक के प्रति आधिक ईर्ष्यालु हो जाता ह

(iii) तिरस्कार करने वाले माता-पिता (Rejecting Parents) - वे माता-पिता जो अपने बालकों को तिरस्कृत करते हैं, बात-बात में अपमानित करते हैं, दूसरों के समक्ष उसकी बुराइयों की अभिव्यक्ति करते हैं, उनके बालक क्रोधी, झगड़ालू एवं आक्रमक व्यवहार वाले हो जाते हैं। वे समाज विरोधी कार्यों में लिप्त हो जाते हैं।

(iv) अति सतर्क माता-पिता (Over Protecting Parents) - कुछ माता-पिता अपने बालकों के प्रति बहुत ही अधिक सतर्क होते हैं। वे बालकों की छोटी-सी-छोटी परेशानियों को देखकर अति चिन्तित एवं विचलित हो जाते हैं। वे बालकों के हरेक छोटे-छोटे कार्यों को स्वयं ही करते हैं। इस कारण उनके बालकों में आत्म-विश्वास की कमी हो जाती है। उनमें निर्णय लेने की क्षमता का विकास नहीं हो पाता है। वे दूसरों पर आश्रित रहने लगते हैं। उनमें भय संवेग का अधिक विकास हो जाता है।

(9) व्यक्तित्व (Personality) – हरेक बालक का अपना अलग व्यक्तित्व होता है। कुछ बालक बहिर्मुखी स्वभाव के होते हैं तो कुछ अन्तर्मुखी स्वभाव वाले। बहिर्मुखी (Extrovert) बालकों में संवेगात्मक स्थिरता अन्तर्मुखी ( Introvert) बालकों की अपेक्षाकृत अधिक देखने को मिलती है।

(10) आत्म-विश्वास (Self Confidence) - आत्म-विश्वासी बालकों में संवेगात्मक स्थिरता अधिक होती है। वे संवेगों के गुलाम नहीं होते हैं, बल्कि संवेग उनके गुलाम होते हैं। वे संवेगों का प्रदर्शन भी काफी सोच-समझकर, विवेकपूर्ण निर्णय लेकर तथा समाज द्वारा मान्य तरीके से ही करते हैं। परन्तु जिन बच्चों का आत्म-विश्वास कमजोर होता है वे संवेगों का प्रदर्शन उग्र रूप से करते हैं। उनकी संवेगों की आवृत्ति भी अधिक होती है।

(11) परिवार का आकार (Size of Family) - संयुक्त परिवार में पलने बढ़ने वाले बालकों में संवेगों का विकास जल्दी होता है क्योंकि वहाँ परिवार के विभिन्न सदस्यों द्वारा विभिन्न प्रकार के संवेगों की अभिव्यक्ति होती रहती है जिसे देखकर बच्चा जल्दी सीख जाता है। इसके विपरीत एकाकी परिवार में बालकों को अनुकरण का अवसर बहुत ही कम मिलता है। अत: उनमें संवेगात्मक विकास धीमी गति से होता है।

(12) लिंग (Sex) – लिंग भी संवेगात्मक व्यवहार को प्रदर्शित करने वाला एक प्रमुख कारक है। अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि सभी अवस्था में, लड़कियों में भय, परेशानी (Worry) एवं चिन्ता (Anxiety) संवेगों की अधिकता रहती है जबकि लड़कों में भय एवं चिन्ता संवेग देखने को कम ही मिलते हैं। मगर हाँ। लड़कों में क्रोध संवेग लड़कियों की तुलना में अधिक होता है। लड़कियाँ लड़कों की तुलना में ईर्ष्यालु अधिक होती हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

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